रोजगार सेवाओं का इतिहास

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, सेना से मुक्त किए गए कार्मिकों तथा अन्य युद्धकालीन श्रमिकों के व्यवस्थित अवशोषण के लिए, इस जटिल समस्या से एकरूपता से निपटने हेतु एक संगठन की आवश्यकता अनुभव की गई। जुलाई 1945 में, पुनर्वास एवं रोजगार महानिदेशालय की स्थापना की गई।

1947 में, देश के विभाजन के उपरांत, इस निदेशालय को बड़ी संख्या में विस्थापित व्यक्तियों (शरणार्थियों) के पुनर्वास का दायित्व सौंपा गया।

वर्ष 1948 के आरंभ में, रोजगार कार्यालयों को सभी श्रेणियों के आवेदकों के लिए खोल दिया गया, जिससे रोजगार सेवा एक पुनर्वास एजेंसी से एक अखिल भारतीय नियोजन संगठन में परिवर्तित हो गई।

01-11-1956 को, रोजगार सेवाओं का दैनिक प्रशासन राज्य सरकारों को हस्तांतरित कर दिया गया। रोजगार सेवा केंद्र और राज्य सरकारों का एक संयुक्त उपक्रम बन गई, जिसमें केंद्र सरकार राष्ट्रीय नीतियाँ, मानक तथा प्रक्रियाएँ निर्धारित करती है जिनका रोजगार कार्यालयों द्वारा पालन किया जाता है, राज्यों के बीच कार्य का समन्वय करती है, विस्तार कार्यक्रमों की योजना बनाती है, प्रशिक्षण आयोजित करती है तथा अन्य आवश्यक कार्य करती है। राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में रोजगार कार्यालयों का पूर्ण नियंत्रण करती हैं।

1959 में, रोजगार कार्यालय (रिक्तियों का अनिवार्य अधिसूचन) अधिनियम बनाया गया, जो 01-05-1960 से प्रभावी हुआ। सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान, जिनमें 25 या अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, को रिक्त पदों की सूचना स्थानीय रोजगार कार्यालय को देनी होती है तथा त्रैमासिक एवं द्विवार्षिक विवरण प्रस्तुत करने होते हैं।

रोजगार सृजन नए विभाग का गठन

श्रम एवं रोजगार विभाग से 11-04-2007 और 31-07-2007 की सरकारी अधिसूचनाओं के माध्यम से रोजगार सृजन एवं प्रशिक्षण का एक नया विभाग गठित किया गया, जिसके मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  1. रोजगार सृजन एवं प्रशिक्षण हेतु एक दृष्टि, रणनीति और नीतिगत ढाँचा विकसित करना।
  2. रोजगार सृजन और व्यावसायिक प्रशिक्षण हेतु विभिन्न विभागीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों से समन्वय लाभ प्राप्त करने के उपाय सुझाना।
  3. कार्ययोजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु संस्थागत एवं संगठनात्मक तंत्र पर परामर्श देना।
  4. राज्य में रोजगार सृजन कार्ययोजनाओं की योजना बनाना, क्रियान्वित करना, निगरानी एवं पर्यवेक्षण करना तथा भविष्य के कदमों पर परामर्श देना।
  5. प्रमुख क्षेत्रों में मानवशक्ति नियोजन एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण को सुगम बनाना।
  6. सेवा क्षेत्रों में अंतराल की पहचान करना तथा बाजार की आवश्यकतानुसार उन्हें दूर करना।
  7. रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण नीतियों के नियामक पहलुओं पर परामर्श देना।
  8. रोजगारोन्मुखी व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना में सहायता तथा मौजूदा संस्थानों को सशक्त बनाना।
  9. स्वयं सहायता युवा समूहों एवं शैक्षणिक संगठनों की क्षमता का दोहन करना।

ब्यूरो के कार्य

  • वन स्टॉप प्लेटफॉर्म: रोजगार, जिसमें विदेशी रोजगार, कौशल प्रशिक्षण, स्वरोजगार तथा उद्यमिता विकास शामिल हैं, को सुगम बनाना।
  • योजनाओं का समन्वय एवं निगरानी: केंद्र एवं राज्य की योजनाओं के सफल क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना।
  • नौकरी चाहने वालों एवं नियोक्ताओं के साथ संवाद: डिजिटल एवं पारंपरिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से नियमित संपर्क उपलब्ध कराना।
  • नियोक्ताओं को सेवाएँ: आवश्यकताओं को समझना, पंजीकरण, प्लेसमेंट ड्राइव एवं कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करना तथा कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • नौकरी चाहने वालों को सेवाएँ: पंजीकरण, परामर्श, प्रशिक्षण तथा प्लेसमेंट एवं प्लेसमेंट के बाद की सहायता प्रदान करना।
  • स्वरोजगार एवं उद्यमिता: युवाओं को व्यवसाय प्रारंभ करने में सहायता तथा मार्गदर्शन, परामर्श एवं बैंक संपर्क उपलब्ध कराना।
  • विदेशी प्लेसमेंट: विदेशी रोजगार चाहने वाले युवाओं को सूचना, परामर्श एवं सहायता प्रदान करना।
  • शैक्षणिक संस्थानों के साथ समन्वय: कौशल, रोजगार एवं उद्यमिता हेतु सहायता प्रदान करने के लिए संस्थानों के साथ साझेदारी करना।
  • कौशल प्रशिक्षण एजेंसियों के साथ समन्वय: पंजीकृत युवाओं के कौशल विकास के लिए एजेंसियों के साथ साझेदारी करना।
  • स्वयं सहायता समूहों को सुविधा प्रदान करना: स्वयं सहायता समूहों का समर्थन एवं उनके साथ समन्वय करना।
  • कृषि रोजगार: नवीनतम कृषि पद्धतियों की जानकारी साझा करना तथा युवाओं को कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में रोजगार पाने में सक्षम बनाना।
  • सार्वजनिक कोष पोषित योजनाएँ: मनरेगा जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन को सुगम बनाना।
  • विज्ञापन मंच: सरकारी विभागों एवं संगठनों की नौकरियों/रिक्तियों का प्रचार-प्रसार करना।
  • अन्य कार्य: राज्य या केंद्र सरकार द्वारा सौंपा गया कोई भी कार्य करना।

कार्यात्मक इकाइयाँ

  1. पंजीकरण
  2. परामर्श
  3. प्लेसमेंट एवं पोस्ट प्लेसमेंट
  4. कौशल विकास
  5. स्वरोजगार एवं उद्यम समर्थन
  6. सूचना, शिक्षा एवं संचार
  7. विदेशी रोजगार एवं प्रवासन